नुसरत जहां का यह कथन और कदम दोनों ही भारतीय संविधान में लिखे “धर्मनिरपेक्ष” अर्थात “सेक्युलरिज़्म” शब्द की सही व्याख्या हैं, यही वास्तविक धर्मनिरपेक्षता है।
अगर आप दूसरे धर्मों के नेताओं द्वारा टोपी पहनने और रोजा अफ्तारी करने को “सेक्युलरिज्म” की संज्ञा देते हैं, तो आपको नुसरत जहां के बिंदी लगाने, साड़ी पहनने और श्री जगन्नाथ यात्रा में भाग लेने को भी “धर्म निरपेक्षता” से जोड़ना होगा।
यदि आप चाहते हैं कि अज़ान के वक्त लाउडस्पीकर बजें तो आपको मंदिरों में होने वाले भजन-कीर्तन और घण्टे-घड़ियालों की आवाज़ को भी सुनने की आदत डाल लेनी चाहिए।
ताली कभी एक हाथ से नहीं बज सकती, उसके लिए दोनों हाथों का होना जरूरी है।
आप तिलक लगाइए हम टोपी पहनें, आप नवरात्र मनाइए हम रमज़ान मनाएं, आप दिवाली मनाइए और हम ईद मनाएं, तभी वास्तविक धर्मनिरपेक्ष देश की नींव रखी जा सकती है।
दरअसल इस देश में “सेक्युलरिज़्म” की परिभाषा को ही ग़लत तरीक़े से पेश किया गया, छद्म धर्मनिरपेक्ष राजनीतिज्ञों और राजनैतिक दलों ने सेक्युलरिज्म की परिभाषा को एकतरफा प्रस्तुत किया। हम रोज़ा अफ्तारी कराएं, यह सेक्युलरिज्म है, वह दीपावली पर पटाखों का विरोध करें यह उनका अधिकार है। हम टोपी पहने यह सेक्युलरिज्म है, वह तिलक न लगाएं यह उनका धार्मिक मसला है। हम अपने धर्म, अपनी संस्कृति और अपनी सभ्यता की बात करें तो यह कट्टरपंथ, कम्युनलिज्म हो जाता है, वह अपने मज़हब, अपने ईमान की बात खुलकर कर सकते हैं क्योंकि यह उनका संवेधानिक हक़ है।
इस तरह की दोगली परिभाषाओं ने इस देश को रसातल में पहुंचा दिया था, लेकिन नुसरत जहां ने एक वास्तविक “धर्मनिरपेक्ष भारत” की नींव रखी है। जिसके लिए इस देश की सवा सौ करोड़ जनता को नुसरत जहाँ जैसे लोगों का आभार व्यक्त करना चाहिए साथ ही धर्मगुरुओं को भी नुसरत जहां की भावनाओं को समझते हुए उनकी हौंसला अफ़जाई करनी चाहिए।
*-मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी और TMC सांसद नुसरत जहां ने एक साथ जगन्नाथ यात्रा में भाग लिया। नुसरत जहां ने जगन्नाथ मंदिर में मंगल आरती भी की, पूजा-आरती के पश्चात नुसरत जहां ने कहा कि “मैं जन्म से मुस्लिम थी और अब भी मुस्लिम हूँ। ये आस्था का मुद्दा है। इसे धर्म से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि मैं हर धर्म का सम्मान करती हूं। इस्लाम में विश्वास रखती हूं।”
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February 6, 2024