विरोध दो प्रकार का होता है- एक सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक। सकारात्मक विरोध करना स्वस्थ लोकतंत्र, सभ्यता और सुसंस्कार की पहचान है। क्योंकि सकारात्मक विरोध हमेशा मर्यादित आचरण और सभ्यता की सीमाओं में किया जाता है। इसलिए सकारात्मक विरोध हमेशा सकारात्मक ऊर्जा उत्सर्जित करता है। जबकि इसके विपरीत नकारात्मक विरोध अमर्यादित आचरण और असभ्यता को जन्म देता है जिससे वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा फैलती है।
जो लोग निराशा और हताशा की गर्त में डूबे होते हैं वह हमेशा नकारात्मक विरोध करते हैं।
अभी हाल ही में संसद के दोनों सदनों में जिस प्रकार से विपक्ष ने आचरण किया वह पूर्णतया अमर्यादित था, और उनका विरोध पूरी तरह नकारात्मक ऊर्जा को फैलाता चला गया। दरअसल वर्तमान में विपक्ष पूरी तरह से निराशा और हताशा के गर्त में डूबा हुआ है। उसके पास कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जिसपर वह सरकार से सकारात्मक और सार्थक चर्चा कर सके। विपक्ष विशेषकर कांग्रेस स्वयं भी जानती है कि जनता का उसपर से पूरी तरह से विश्वास उठ चुका है। आज भारत धीरे-धीरे कांग्रेस मुक्त होता जा रहा है। और जनता के सामने कांग्रेस के राज में हुए तमाम भ्रष्टाचार, घोटाले और झूठ-फरेब की राजनीति का कच्चा चिट्ठा खुल चुका है। और कांग्रेस पूरी तरह से बेनकाब हो चुकी है। लेकिन कांग्रेसी नेता इस सच्चाई को जानकर भी अंजान बने हुए हैं। विपक्ष पूरी तरह से दिशाहीन और नेतृत्वविहीन हो चुका है। जब कोई भी व्यक्ति/समूह दिशा और दशा हीन हो जाता है, तब वह तर्क-वितर्क से बचने लगता है, और जब कोई भी इंसान तर्क-वितर्क से बचने लगता है तब वह कमज़ोर हो जाता है और कमज़ोर इंसान हमेशा कुतर्क करता है, और जब उसके कुतर्क नहीं माने जाते तब वह चीखता है, गाली-गलौज करता है, और अंततः मारपीट पर उतारू हो जाता है। कमोवेश आज यही स्थिति भारत में विपक्ष की हो चुकी है। सम्पूर्ण विपक्ष का नेतृत्व कांग्रेस के हाथ में है, और कांग्रेस का नेतृत्व अभी भी श्री राहुल गांधी के हाथों में है। परन्तु श्री राहुल गांधी चंद संगठनों और नेताओं का नेतृत्व करने में लगातार असफल रहे हैं, जिसमें उनकी स्वयं की पार्टी के नेता भी शामिल हैं।
स्वयं राहुल गांधी ने लोकतंत्र के मंदिर में देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के जबरदस्ती गले पड़ने के बाद किस प्रकार का अश्लील, बेहूदा ईशारा करते हुए अमर्यादित आचरण प्रस्तुत किया था। जिसे पूरी दुनिया ने देखा था। उस समय जो आचरण श्री राहुल गांधी ने किया था, वह उनकी हताशा और घोर निराशा का ही एक नमूना था।
श्रीकृष्ण ने श्रीमद भगवतगीता में कहा है कि श्रेष्ठजन जिस प्रकार का आचरण करते हैं, उनके अनुयायी वैसा ही आचरण दोहराते हैं।
शायद श्री राहुल गांधी जनेऊ धारण करने से पूर्व श्रीमद गीता पढ़ना भूल गए थे।
बहरहाल, विपक्ष का यह दुर्भाग्य है कि उन्हें श्री राहुल गांधी जैसा निराश और हताश नेता मिला और भारत की जनता का भी यह दुर्भाग्य ही है कि उसे एक दिशाहीन और दशाहीन विपक्ष मिला है। जो स्वयं दिशाहीन है वह सत्तापक्ष को कैसे दिशा दिखा सकता है।
🖋️ *मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*
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