सूत्रों के हवाले से ख़बर मिली है कि बिजनौर की एक महिला नेता जो कि पहले साईकिल से हाथी पर सवार हुईं थीं औऱ फिर हाथी से जमीन पर आ गई, आजकल दिल्ली के चक्कर काटने में लगी हैं। औऱ इसी के चलते आज भी वह कुछ लोगों को साथ लेकर दिल्ली यात्रा पर रवाना हो गई हैं, ऐसा सूत्रों का मानना है।
कुछ लोगों का मानना है कि सपा और बसपा से निराश होकर अब कांग्रेस से उम्मीद की किरण लगाकर उक्त महिला नेता दिल्ली के चक्कर लगा रही हैं।
जबकि अन्य लोगों का मानना है कि यह महिला नेता अभी भी हाथी पर सवारी करने के मंसूबे बना रही हैं। अब कौन सच्चा है और कौन झूठा यह कहना मुश्किल है। परंतु इतना तय है कि अपने स्वार्थ के लिए एक समय भाजपा से हाथ मिलाने वाली इन महिला नेता को एक मुस्लिम समुदाय के नेता का प्रतिनिधित्व स्वीकार नहीं हो पा रहा है।
बसपा सुप्रीमो मायावती द्वारा जबसे पूर्व बसपा विधायक इक़बाल ठेकेदार को बिजनौर लोकसभा प्रभारी बनाया गया है, तबसे ही कुछ संकीर्ण मानसिकता के लोगों ने माहौल को दूषित किया हुआ है।
मनुवादी मानसिकता के साथ-साथ एक सम्प्रदाय विशेष से घृणा करने वाले लोगों को यह हज़म नहीं हो पा रहा कि दलित और मुस्लिम समाज एक प्लेटफार्म पर आए।
प्रश्न यह है कि आखिर एक मुस्लिम समुदाय के नेता के प्रतिनिधित्व से इतनी नफ़रत क्यों?
बिजनौर लोकसभा सीट पर मुस्लिम समुदाय की भागीदारी करीब 40 प्रतिशत है, तब ऐसे में क्या मुस्लिम को यह हक़ नहीं कि वो अपना प्रतिनिधि चुन सकें?
क्या मुस्लिम समाज को प्रतिनिधित्व करने का अधिकार नहीं है?
एक बड़ा सवाल यह भी है कि यदि यह अफ़वाह फैलाई जा रही है कि एक मुस्लिम को टिकट देने से बिजनौर लोकसभा सीट पर गठबंधन की दावेदारी कमजोर पड़ जाएगी, तब क्या यह दावा किया जा सकता है कि किसी दलबदलू नेता को टिकट देने से दावेदारी मज़बूत हो जाएगी?
कुछ लोगों का मानना है कि सपा और बसपा से निराश होकर अब कांग्रेस से उम्मीद की किरण लगाकर उक्त महिला नेता दिल्ली के चक्कर लगा रही हैं।
जबकि अन्य लोगों का मानना है कि यह महिला नेता अभी भी हाथी पर सवारी करने के मंसूबे बना रही हैं। अब कौन सच्चा है और कौन झूठा यह कहना मुश्किल है। परंतु इतना तय है कि अपने स्वार्थ के लिए एक समय भाजपा से हाथ मिलाने वाली इन महिला नेता को एक मुस्लिम समुदाय के नेता का प्रतिनिधित्व स्वीकार नहीं हो पा रहा है।
बसपा सुप्रीमो मायावती द्वारा जबसे पूर्व बसपा विधायक इक़बाल ठेकेदार को बिजनौर लोकसभा प्रभारी बनाया गया है, तबसे ही कुछ संकीर्ण मानसिकता के लोगों ने माहौल को दूषित किया हुआ है।
मनुवादी मानसिकता के साथ-साथ एक सम्प्रदाय विशेष से घृणा करने वाले लोगों को यह हज़म नहीं हो पा रहा कि दलित और मुस्लिम समाज एक प्लेटफार्म पर आए।
प्रश्न यह है कि आखिर एक मुस्लिम समुदाय के नेता के प्रतिनिधित्व से इतनी नफ़रत क्यों?
बिजनौर लोकसभा सीट पर मुस्लिम समुदाय की भागीदारी करीब 40 प्रतिशत है, तब ऐसे में क्या मुस्लिम को यह हक़ नहीं कि वो अपना प्रतिनिधि चुन सकें?
क्या मुस्लिम समाज को प्रतिनिधित्व करने का अधिकार नहीं है?
एक बड़ा सवाल यह भी है कि यदि यह अफ़वाह फैलाई जा रही है कि एक मुस्लिम को टिकट देने से बिजनौर लोकसभा सीट पर गठबंधन की दावेदारी कमजोर पड़ जाएगी, तब क्या यह दावा किया जा सकता है कि किसी दलबदलू नेता को टिकट देने से दावेदारी मज़बूत हो जाएगी?
बहरहाल, अभी वक़्त है कि मुस्लिम समुदाय अपनी दावेदारी को हाथ से न जाने दे, औऱ बेहद मज़बूती के साथ एकजुट होकर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करे।
रहा सवाल कुंवर साहबों का, तो उनका तो काम ही “फूट डालो औऱ राज करो” की राजनीति करने का है।
इसलिए बिजनौर की “महारानी” दलित और मुस्लिम समुदाय में फूट डालकर मनुवादी मानसिकता के लोगों की विजय का रास्ता साफ कर रही हैं।
*-मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*
राजनीतिक विश्लेषक