के ख़ुशबू आ नहीं सकती, कभी बनावट के उसूलों से।।
किसानों के स्वयंभू हितैषी बने श्रीमान राकेश टिकैत औऱ उनके भाई श्रीमान नरेश टिकैत पर यह शेर बिल्कुल सटीक बैठता है। टिकैत बंधुओं ने राष्ट्रवादी चैनल ज़ी न्यूज़ के एक स्टिंग ऑपरेशन के बाद जिस प्रकार की प्रतिक्रिया दी है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। लोकतंत्र और संविधान की दुहाई देने वाले श्री राकेश टिकैत लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को किस अधिकार से धमका रहे हैं? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ लेकर अनाप-शनाप बयानबाजी करने वालों को मीडिया की आज़ादी रास क्यों नहीं आ रही है। यह तो बिल्कुल वही बात हुई “या तो भेली दे, नहीं तो चल प्रधान के पास।” मतलब या तो कथित किसान नेताओं के सुर में सुर मिलाओ, अन्यथा “किसान विरोधी” कहलाओ। व्हाट एन आइडिया टिकैत जी!
श्री नरेश टिकैत साहब ने स्टिंग ऑपरेशन के दौरान जो सच उगला है, उसने कम से कम “कथित किसान आंदोलन” की कलई तो खोलकर रख ही दी। पूरा देश इस बात को भलीभांति समझ चुका है कि “कथित किसान हितों” की आड़ में “राजनीतिक हितों और स्वार्थों” को सिद्ध करने का प्रयास किया जा रहा है। इसे कुछ यूं भी कहा जा सकता है कि
“कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना।
टिकैत के खेल को समझ गया सारा ज़माना।।”
यहां उल्लेखनीय है कि भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष और तथाकथित किसान नेता श्री राकेश टिकैत के भाई श्री नरेश टिकैत, ज़ी न्यूज़ द्वारा किए गए एक स्टिंग ऑपरेशन में अपनी दोहरी नीतियों के कारण पकड़े गए हैं, जिसमें उन्हें यह कहते हुए पाया गया कि विदेशी कंपनी को न्यूनतम बिक्री मूल्य (MSP) से कम कीमत पर गन्ना और फ़ैक्ट्री के लिए सस्ती जमीन भी दिला सकते हैं यदि नकद में भुगतान किया जाए। मतलब भुगतान नकदी में होना चाहिए ताकि आयकर इत्यादि से बचा जा सके, और उनके ख़िलाफ़ कोई ठोस सबूत भी न हो।
अम्बानी-अडानी को अपनी जमीनें न देने का ढोल पीटने वालों की सारी पोल खुलकर सामने आ गई है। करीब 9 महीने से मुख्य मार्गों को घेरकर लंगर चलाने वाले और कथित रूप से एयरकंडीशनर तंबुओं में झपकी मारने वाले “किसान नेताओं” की पोल का ढोल बीच बजरिया में ही खुल गया।
हालांकि इस बात से कदापि इंकार नहीं किया जा सकता है, कि किसानों के साथ समस्याएं हैं, और हमेशा और हर सरकार में किसानों और सरकारों के बीच रस्साकशी चलती रही है और आगे भी इसी प्रकार चलती रही है। लेकिन किसान हितों की आंच पर राजनीतिक रोटियां सेंकने का शायद यह पहला मामला है।
श्रीमान टिकैत साहब आप किसानों के हित की बात ख़ूब कीजिये लेकिन लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का गला घोंटने की धमकी देकर आप क्या सिद्ध करना चाहते हैं।
श्रीमान राकेश टिकैत और उनके भ्राता श्री नरेश टिकैत को यह समझना ही होगा कि सर-फुटटॉवल और धमकियां देने से किसानों का हित नहीं सधेगा, बल्कि बातचीत से ही कोई शांतिपूर्ण समाधान निकालना होगा। साथ ही भारत सरकार को भी इस समस्या का जल्द से जल्द स्थायी समाधान निकालने हेतु पहल करनी होगी, यूं टिकैत साहब को नेता बनाने से कोई लाभ होने वाला नहीं है।
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🖋️ *मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*
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