बिजनौर और नगीना लोकसभा सीट पर तकरीबन 11 लाख मुस्लिम वोटर्स हैं (यह आंकड़े केवल अनुमान पर आधारित है )। नगीना लोकसभा एक सुरक्षित सीट है इसलिए वहां से किसी मुस्लिम को टिकट मिलना लगभग नामुमकिन है किंतु बिजनौर लोकसभा सीट पर जिसमें चाँदपुर, बिजनौर, मीरापुर, पुरकाजी और हस्तीनापुर विधानसभा शामिल हैं और उसमें मुस्लिम समुदाय की भागीदारी तकरीबन 40%से ऊपर है , वहाँ पर किसी मुस्लिम प्रत्याशी को न चुनकर किसी गैर-मुस्लिम को प्रत्याशी बनाया जाना ठीक वैसा ही है जैसे “उसी डाल को काट दिया जाए जिस पर आप बैठे हैं”. यह बात इसलिए उचित है कि गठबंधन का आधार मुस्लिम समुदाय ही है, परंतु विडंबना यह है कि गठबंधन के शीर्ष नेताओं की नज़रों में मुस्लिम कम्यूनिटी केवल किंगमेकर है न कि किंग।
शायद यही कारण है कि बिजनौर लोकसभा सीट पर किसी मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति को प्रत्याशी न बनाकर बल्कि किसी गैर-मुस्लिम का नाम आगे बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है।
ऐसे में क्षेत्र में यह चर्चा ज़ोर पकड़ रही है कि यदि गठबंधन किसी मुस्लिम को प्रत्याशी घोषित नहीं करता है तब मुस्लिम समुदाय किसी अन्य विकल्प पर भी विचार कर सकता है।
*राजनीतिक जानकारों का यह भी मानना है कि यदि कांग्रेस किसी मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट दे देती है तब मुस्लिम समुदाय कांग्रेस को एक बेहतर विकल्प के रूप में चुन सकता है। यदि ऐसा होता है तब बिजनौर लोकसभा सीट पर टक्कर कांग्रेस और भाजपा के बीच होगी तथा गठबंधन हाशिये पर चला जाएगा।*
अभी समय है, यदि मुस्लिम समुदाय सही दिशा में प्रयास करता है तब बहनजी को इस दिशा में अपने निर्णय पर पुनः विचार करना ही होगा।
आज की तारीख में बिजनौर लोकसभा क्षेत्र के लगभग प्रत्येक मुसलमान की ज़ुबान पर एक ही नारा है-
*11लाख वोटर की है भागीदारी।*
*फिर भी क्यों नहीं मिल रही हिस्सेदारी।*
*बहनजी हमें भी सम्मान दो।*
*प्रत्याशी हमें मुस्लमान दो।*
जब सर्वजन हिताये सर्वजन सुखाये
तब प्रत्याशी मुस्लिम क्यों न लायें
*-मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*