लियोनार्ड मोसले के अनुसार भारत विभाजन के दौरान बड़े पैमाने पर हुई हिंसा के बावजूद भी महात्मा गांधी ने कहा था- “चाहे पाकिस्तान में समस्त हिन्दू व सिख मार दिए जाएं, पर भारत के एक कमज़ोर मुसलमान बालक की भी रक्षा होगी”.
स्रोत-(पुस्तक- भारत का राष्ट्रीय आंदोलन: एक विहंगावलोकन, लेखक-मुकेश बरनवाल, डॉ. भावना चौहान)
कांग्रेस का इतिहास मुस्लिम तुष्टीकरण के तमाम उदाहरणों से भरा हुआ है। आज देश में CAA-NRC की आड़ में जिन मंचों से मुस्लिम कट्टरपंथी ताकतों को शह दी जा रही है, उन तमाम मंचों के पीछे जिस बेशर्मी के साथ कांग्रेस पार्टी और उसके तमाम नेता खड़े हैं, वह कोई नई बात नहीं है। आज जिस तरह की भाषा मणिशंकर अय्यर, शशि थरूर सहित तमाम कांग्रेसी नेता बोल रहे हैं, यह कांग्रेस के पाठ्यक्रम का एक हिस्सा हैं। वह कांग्रेस ही थी जिसने धर्मनिरपेक्षता (सेक्युलिरिज्म) शब्द को संविधान में जगह दी, औऱ हमेशा उसकी आड़ में मुस्लिम कट्टरपंथी ताकतों को प्रश्रय दिया। जिसका खामियाजा आज तक यह देश भुगत रहा है।
डॉ. अम्बेडकर अपनी पुस्तक “पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ इंडिया” में लिखते हैं कि “कांग्रेस ने मुसलमानों को राजनीतिक और अन्य रियायतें देकर उन्हें सहन करने और खुश रखने की नीति अपनाई है। क्योंकि वे समझते हैं कि मुसलमानों के समर्थन के बिना वे अपने मनोवांछित लक्ष्य को नहीं पा सकते। मुझे लगता है कि कांग्रेस ने दो बातें समझीं नहीं हैं। पहली बात यह है कि तुष्टीकरण और समझौते में अंतर होता है, और यह एक महत्वपूर्ण अंतर है। “तुष्टीकरण” का अर्थ है, एक आक्रामक व्यक्ति या समुदाय को मूल्य देकर अपनी ओर करना ; और यह मूल्य होता है उस आक्रमणकारी द्वारा किये गए, निर्दोष लोगों पर, जिनसे वह किसी कारण से अप्रसन्न हो, हत्या, बलात्कार, लूटपाट और आगजनी जैसे अत्याचारों को अनदेखा करना। दूसरी ओर, “समझौता” होता है दो पक्षों के बीच कुछ मर्यादाएं निश्चित कर देना जिनका उल्लंघन कोई भी पक्ष नहीं कर सकता। तुष्टीकरण से आक्रांता की मांगों और आकांक्षाओं पर कोई अंकुश नहीं लगता, समझौते से लगता है।
दूसरी बात, जो कांग्रेस समझ नहीं पाई है, वह यह है कि छूट देने की नीति ने मुस्लिम आक्रामकता को बढ़ावा दिया है; और, अधिक शोचनीय बात यह है कि मुसलमान इन रियायतों का अर्थ लगाते हैं हिंदुओं की पराजित मानसिकता और सामना करने की इच्छा-शक्ति का अभाव। तुष्टीकरण की यह नीति हिंदुओं को उसी भयावह स्थिति में फंसा देगी जिसमें मित्र देश (द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटेन, फ्रांस आदि) हिटलर के प्रति तुष्टीकरण की नीति अपनाकर स्वयं को पाते थे”.
स्रोत-(पुस्तक-डॉ. अम्बेडकर की दृष्टि में मुस्लिम कट्टरवाद, लेखक- एस के अग्रवाल)
लिनलिथगो, वेबेल तथा माउंटबेटन जैसे वायसरायों के संवैधानिक सलाहकार वापुल पांगुनी मेनन (वीपी मेनन) ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “ट्रांसफर ऑफ पॉवर” में लिखा है- “यदि कांग्रेस ने प्रान्तों में लाभदायक स्थिति को नहीं छोड़ा होता, तो भारतीय इतिहास का घटनाक्रम सम्भवतः बहुत अलग होता”। वीपी मेनन आगे लिखते हैं कि-” इस्तीफे देकर कांग्रेस ने घटिया राजनीतिक सूझबूझ का परिचय दिया है। यह स्पष्ट है कि कांग्रेस मंत्रिमंडल के इस्तीफों के बिना जिन्ना और मुस्लिम लीग कभी उस मुक़ाम को नहीं पा सकते थे, जो उन्हें प्राप्त हुआ। इन इस्तीफों का दीर्घकालिक परिणाम यह हुआ कि सैनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्त अफगानिस्तान और भारत की सीमा पर स्थित ख़ैबर दर्रे पर राष्ट्रवादियों ने अपना नियंत्रण खो दिया। यदि 1940-46 ईसवी के समय कांग्रेस का इन मुस्लिम बहुल प्रान्तों में शासन बना रहता, तो भारत के विभाजन की योजना आगे नहीं बढ़ाई जा सकती थी।कांग्रेस मंत्रिमंडल के इस्तीफों से अति प्रसन्न जिन्ना ने इसपर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था- “घोर गलती, मतलब कांग्रेस की घोर गलती”.
स्रोत-(पुस्तक- भारत का राष्ट्रीय आंदोलन: एक विहंगावलोकन, लेखक-मुकेश बरनवाल, डॉ. भावना चौहान)