श्रीमती विधायिका जी-
“न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर”
श्रीमान विधायक जी-
“आज पुरानी राहों से कोई हमें आवाज़ न दे”
श्री मुंगेरीलाल-
“अपना काम बनता, भाड़ में जाये जनता”
श्री पठान चाचा-
“हम जहां खड़े होते हैं, लाइन वहीं से शुरू होती है”
श्रीमान डॉक्टर पनीर आशिक़ साहब”-
“बस एक सनम चाहिए, आशिकी के लिए”
श्रीमान पप्पू भय्या-
“हमने अपना सबकुछ छोड़ा, टिकट तेरा पाने को”
श्रीमान ताऊ जी-
“जानी, ये बच्चों के खेलने की चीज़ नहीं, हाथ कट जाए तो खून निकल आता है”
श्रीमान हड़कल कुरैशी-
“वक़्त आने पर दिखा देंगे तुझे ए पारसां, अभी से तुझे क्या बताएँ, क्या हमारे दिल में है”
श्रीमान बर्खास्त अंजुम-
“आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ”
श्रीमान खिसमाल शेख़-
“सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाजुएं कातिल में है”.
श्रीमान क़ैद इक़बाल साहब-
“प्राण जाए पर वचन न जाये”
श्रीमान सलिन पांडे-
“जय श्रीराम, हो गया अपना काम”
श्रीमान आवामी सोमवेश-
“जलता हुआ दिया हूँ, मगर रौशनी नहीं”
श्रीमान सुप्रभात जाधव-
“हिंदुत्व का शौक़, मियां-भाइयों से खौफ़”
श्रीमान वसीमुद्दीन भाई-
“रस्सी जल गई पर बल नहीं गया”
श्रीमान शामिर सिद्दीकी-
“सबकुछ लुटा के होश में आये तो क्या हुआ”
श्रीमान डॉ. कण्डील नर्सिंग होम-
“सबकुछ सीखा हमने, न सीखी होशियारी”
विशेष नोट- “यारों मुझको माफ़ करना मैं नशे में हूँ। होली करीब है कृपया दिल पर न लें।”
-मनोज चारवेदी “शास्त्री”