कोई भी व्यक्ति, व्यक्तियों का समूह अथवा संगठन कभी ताक़तवर नहीं होता, ताक़तवर होती है उस व्यक्ति या संगठन की सोच, उसकी मानसिकता या उसकी विचारधारा। व्यक्ति मिट जाता है, समाप्त हो जाता है परन्तु उसकी सोच, उसकी विचारधारा सदैव जीवित रहती है। इसलिए व्यक्ति को मारने से बेहतर है कि उसकी सोच, उसकी विचारधारा को मार दो। सांप घातक नहीं होता बल्कि उसका वह दांत घातक होता है जिसमें ज़हर होता है। इसलिए सांप को मारने से कहीं अधिक बेहतर है कि उसके उन दांतों को तोड़ दो जिनमें ज़हर भरा है।
नाथूराम गोड्से ने मोहनदास करमचंद गांधी को मारा था, गांधीवाद को नहीं। कांग्रेस ने उसी गांधीवाद को पुष्पित-पल्लवित किया और उस गांधीवाद को ढाल बनाकर इस देश पर 70 सालों तक हुक़ूमत की।
तालिबान एक ऐसी ही विचारधारा है। अफगानिस्तान से रूसी सैनिकों की वापसी के बाद 1990 के दशक की शुरुआत में उत्तरी पाकिस्तान में तालिबान का उभार हुआ था. *पश्तो भाषा में तालिबान का मतलब होता है “छात्र”, खासकर ऐसे छात्र जो कट्टर इस्लामी धार्मिक शिक्षा से प्रेरित हों. माना जाता है कि कट्टर सुन्नी इस्लामिक विद्वानों ने धार्मिक संस्थाओं (मज़हबी इदारों) अर्थात मदरसों के सहयोग से पाकिस्तान में इनकी बुनियाद खड़ी की थी. तालिबान पर देवबंदी विचारधारा का पूरा प्रभाव है। तालिबान को खड़ा करने के पीछे अरब देशों से आ रही आर्थिक मदद को जिम्मेदार माना गया था।* शुरुआती तौर पर तालिबान ने ऐलान किया कि इस्लामी इलाकों से विदेशी शासन खत्म किया जाना, वहां शरिया कानून और इस्लामिक राज्य स्थापित करना उनका मकसद है। *यहां यह भी उल्लेखनीय है कि शुरुआत में तालिबानियों ने अफगान में शांति, प्रेम, सौहार्द और भाईचारे की ही बात की थी जिसके चलते शुरू-शुरू में सामंतों के अत्याचार, अधिकारियों के भ्रष्टाचार से परेशान अफगानी आवाम ने तालिबान में मसीहा देखा और कई इलाकों में कबाइली लोगों ने इनका स्वागत किया लेकिन बाद में तालिबान की कट्टर इस्लामिक विचारधारा और गतिविधियों ने उसकी ये लोकप्रियता भी खत्म कर दी।* लेकिन तब तक तालिबान अपनी जड़ें मज़बूत करने में सफल हो चुका था।
तालिबान कट्टर धार्मिक विचारों से प्रेरित कबाइली लड़ाकों का संगठन है. इसके अधिकांश लड़ाके और कमांडर पाकिस्तान- अफगानिस्तान के सीमा इलाकों में स्थित कट्टर धार्मिक संगठनों यानी मदरसों में पढ़े लोग, मौलवी और कबाइली गुटों के चीफ हैं. घोषित रूप में इनका एक ही मकसद है पश्चिमी देशों का शासन से प्रभाव खत्म करना और देश में इस्लामी शरिया कानून की स्थापना करना। पहले मुल्ला उमर और फिर 2016 में मुल्ला मुख्तर मंसूर की अमेरिकी ड्रोन हमले में मौत के बाद से मौलवी हिब्तुल्लाह अखुंजादा तालिबान का चीफ है. वह तालिबान के राजनीतिक, धार्मिक और सैन्य मामलों का सुप्रीम कमांडर है. हिब्तुल्लाह अखुंजादा कंधार में एक मदरसा चलाता था और तालिबान की जंगी कार्रवाईयों के हक में फतवे जारी करता था।
भारत में भी एक विशेष वर्ग तालिबानी विचारधारा को एक लंबे समय से पुष्पित-पल्लवित कर रहा है। तालिबानी किसी देश या क्षेत्र विशेष की विचारधारा नहीं है। बल्कि यह पूरी दुनिया में इस्लामिक शासन को स्थापित करने और कट्टरपंथी सुन्नी विचारधारा को प्रचारित-प्रसारित करने का वहाबी आंदोलन कहा जा सकता है। इसके लिए किसी विशेष पढ़ाई-लिखाई की आवश्यकता नहीं है बल्कि जो कोई भी शख़्स पूरी दुनिया में इस्लामिक हुक़ूमत औऱ कट्टरपंथी सुन्नी विचारधारा से पूर्णतया सहमत है, वही व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह तालिबानी है।
आज जिस प्रकार से समाजवादी पार्टी के एक सांसद और उसके बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मौलाना सज्जाद नौमानी ने तालिबानी विचारधारा को अपना समर्थन दिया है, उससे लगता है कि भारत में भी तालिबानी विचारधारा को प्रोत्साहन मिल रहा है। यह न केवल भारत में एक नए तालिबान की सुगबुगाहट है बल्कि एक बेहद गम्भीर चिंतन का विषय भी है। जिस पर भारत की सरकार और शांतिप्रिय जनता को बहुत सावधानी पूर्वक विचार करना होगा।
न समझोगे तो मिट जाओगे ए हिन्दुस्तां वालो।
तुम्हारी दास्तां भी न रहेगी दास्तानों में।।
🖋️ *मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*
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*विशेष नोट- उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। उगता भारत समाचार पत्र के सम्पादक मंडल का उनसे सहमत होना न होना आवश्यक नहीं है। हमारा उद्देश्य जानबूझकर किसी की धार्मिक-जातिगत अथवा व्यक्तिगत आस्था एवं विश्वास को ठेस पहुंचाने नहीं है। यदि जाने-अनजाने ऐसा होता है तो उसके लिए हम करबद्ध होकर क्षमा प्रार्थी हैं।
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