कल तक स्वयम्भू मानवाधिकार सन्गठन सहित कांग्रेसी, सपाई, ममता बनर्जी उर्फ़ मीम बानो, “आप” पार्टी और बसपा सहित तमाम लोग जामिया हिंसा पर विधवा विलाप कर रहे थे और प्रियंका वाड्रा सहित तमाम पाखंडी कांग्रेसी इंडिया गेट पर हाहाकार मचा रहे थे. कुछ जिन्नाभक्त सोशल मीडिया पर गाँधीवाद और संविधान की दुहाई दे रहे थे.
लेकिन आज दिल्ली के जाफराबाद में जिस तरह “भटके हुए नौजवानों” ने हिंसा का खुला तांडव किया उस पर तमाम पाकिस्तानी पिट्ठू और जिन्नाभक्त मुहँ में दही जमाकर बैठ गए हैं . कोई नहीं बोल रहा और कोई बोलेगा भी नहीं. बटाला हॉउस के आतंकवादियों की मौत पर आंसू बहाने वाली सोनिया गाँधी ने कहा कि “शांतिपूर्ण आन्दोलन कर रहे लोगों की आवाज को दबाया जा रहा है”. सोनिया गाँधी को यह दिखाई नहीं दे रहा है कि किस प्रकार से उनके “भटके हुए नौजवान” सडकों पर पुलिस वालों पर पत्थर बरसाकर, उनपर पेट्रोल बम बरसा रहे हैं. उसका सीधा कारण है कि आज की तारीख में विपक्ष सही मायने में पाकिस्तान का एजेंट बन चुका है. कांग्रेस पाकिस्तानी एजेंट की तरह काम कर रही है. गाँधी परिवार केवल एक मुखौटा बनकर रह गया है, सही मायने में कांग्रेस की बागडोर अहमद पटेल और गुलाम नबी आजाद जैसे मुगल परस्त नेताओं के हाथ में है.
लेकिन प्रश्न यह है कि हमारी केंद्र सरकार और गृह-मंत्रालय किस बड़ी अनहोनी का इंतजार कर रहा है. हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने २०१९ का चुनाव जीतने के बाद एक नारा दिया था, “सबका साथ-सबका विकास और सबका विश्वास” लेकिन आज ऐसा प्रतीत हो रहा है कि महात्मा गाँधी की “कायरतावादी अहिंसा” की अंधभक्ति में लीन होकर हमारे प्रिय मोदी जी यह भूल गए हैं कि “शठे शाठ्यम समाचरेत” का सिद्धांत भी भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.
आखिर हम कब तक अपने एक गाल पर थप्पड़ खाकर दुसरे गाल को आगे करते रहेंगे? अब वक्त आ गया है कि ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाये. हमारी सेना और पुलिस के हाथ पूरी तरह से खोल दिए जाने चाहियें. मोदी जी अब आपको समझ लेना चाहिए कि आपका “सबका विश्वास” का नारा हमारा सत्यानाश करने पर उतारू है.