शिव कुमार शर्मा (कांग्रेस) ने सदरूद्दीन (निर्दलीय) को हराया। 1958 से 1969 तक इस सीट पर चौधरी नरदेव सिंह का कब्ज़ा रहा। यहां उल्लेखनीय है कि चौधरी नरदेव सिंह जी (दत्तियाने वाले) लगातार निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीते। 1969 शिवमहेंद्र सिंह (बीकेडी),
1974 धर्मवीर सिंह (बीकेडी), 1977 में एक बार फिर से धर्मवीर सिंह (लोकदल) से चुनाव जीते।
1980 में पहली बार स्व. अमीरुद्दीन बादशाह साहब ने कांग्रेस (जे) के टिकट पर चुनाव जीतकर मुस्लिम प्रतिनिधित्व का झंडा बुलंद किया। स्व. अमीरुद्दीन बादशाह साहब चांदपुर विधानसभा में मुस्लिम समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले पहले व्यक्ति थे। कहा जाता है कि उस समय मुस्लिम समाज द्वारा स्व. अमीरुद्दीन बादशाह साहब के लिये “अब्बा” का सम्बोधन किया जाता था। लेकिन उसके बाद 1985 में वह स्व. देवेंद्र सिंह जी (कांग्रेस) से चुनाव हार गए, उस समय बादशाह साहब ने लोकदल की सीट पर चुनाव लड़ा था। उसके बाद 1990 में वह बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े लेकिन स्व. चौधरी तेजपाल सिंह (जनता दल) से चुनाव हार गए। 1991 में वह फिर से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े और इस बार राम लहर में वह स्व. डॉ. अमर सिंह जी (भाजपा) से चुनाव हार गए। उस समय भाजपा पहली बार चांदपुर विधानसभा से चुनाव जीती थी।
उसके बाद 1993 में चौधरी तेजपाल सिंह जी निर्दलीय चुनाव जीत गए, 1996 से 2007 तक स्वामी ओमवेश जी का परचम लहराता रहा। कुल मिलाकर 1993 से 2007 तक चांदपुर विधानसभा में जाट समाज का बोलबाला रहा।
लेकिन 2007 से 2017 तक लगातार पूर्व बसपा विधायक मौहम्मद इक़बाल साहब ने एक बार फिर से मुस्लिम समाज के प्रतिनिधित्व का झंडा बुलंद किया। लेकिन 2017 में वह भाजपा की मौजूदा विधायक श्रीमती कमलेश सैनी से लगभग 35,000 वोटों से चुनाव हार गए।
अब 2022 में अभी तक जिस प्रकार के समीकरण बन रहे हैं, उनसे एक बार फिर से चांदपुर विधानसभा में ग़ैर-मुस्लिम प्रतिनिधित्व जाता दिखाई दे रहा है। चूंकि अभी तक यह माना जा रहा है कि सपा और लोकदल का गठबंधन होता है तो यदि सीट सपा को जाती है तो स्वामी ओमवेश जी को टिकट मिलना लगभग तय है, और यदि लोकदल के खाते में जाती है तो भी 60 प्रतिशत चांस ग़ैर-मुस्लिम उम्मीदवार के हैं और 40 प्रतिशत में मुस्लिम उम्मीदवार घोषित किया जा सकता है।
उधर कुछ दूसरे लोगों का मानना है कि यदि गठबंधन की सीट लोकदल के खाते में जाती है तो लोकदल का टिकट मौहम्मद इक़बाल साहब को मिलेगा। तो यहां यह भी स्पष्ट करना चाहेंगे कि यदि लोकदल से इक़बाल साहब चुनाव लड़ेंगे तो भाजपा और गठबंधन के बीच सीधा चुनाव होने की प्रबल संभावना है।
दरअसल, मुस्लिम राजनीतिक विद्वानों का मानना है कि चांदपुर विधानसभा का मुस्लिम समुदाय किसी भी रूप में मुस्लिम प्रतिनिधित्व को वापस लाना चाहता है। उनका मानना है कि यदि इस बार कोई ग़ैर-मुस्लिम प्रतिनिधित्व करता है तो उसके बाद मुस्लिम प्रतिनिधित्व के लिए एक लंबे समय तक प्रतीक्षा करनी होगी।
कुल मिलाकर चांदपुर विधानसभा में इस बार मुस्लिम समाज के लिए अग्नि परीक्षा है। क्योंकि उसके सामने पहली चुनौती मुस्लिम प्रतिनिधित्व की वापसी और दूसरी भाजपा को हराने की है।
अब देखना यह है कि क्या विधानसभा क्षेत्र का मुस्लिम समाज इस अग्नि परीक्षा में खरा उतर पायेगा।
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🖋️ *मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
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