बड़ालालपुर स्थित पंडित दीनदयाल हस्तकला संकुल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारियों के प्रशिक्षण वर्ग में सर संघ संचालक मोहन भागवत ने अखिल भारतीय, क्षेत्रीय एवं प्रान्त के पदाधिकारियों संग बैठक की. जिसमें उन्होंने समाज एक ज्वलंत मुद्दों पर भी गहनता से चर्चा की गई. काफी मंथन करने के पश्चात सामने आया कि बेरोजगारी, अशिक्षा, हिंसा और हिंदुओं के धर्म परिवर्तन की बात सामने आई. यह भी खबर आ रही है कि सुबह से रात्रि तक चले कुल चार सत्रों में हिन्दू, हिंदुत्व, गाय, गंगा पर चर्चा की गई.
अब सवाल ये है कि आखिर बीजेपी सरकार के अंतिम चरणों में यानि लोकसभा चुनाव के ठीक पहले संघ को इन सब बातों की याद क्यों आई? बीजेपी की सरकार को पांच साल पुरे होने को आये लेकिन अभी तक बेरोजगारी की समस्या मुहं बाये खड़ी है. सवाल ये भी है कि हिंदुत्व को खतरा आखिर क्यों है? हिन्दुओं के धर्मपरिवर्तन के मुख्य कारण क्या हैं? और उनके निदान के लिए बीजेपी सरकार ने क्या ठोस कदम उठाये? तीन तलाक के मुद्दे को जोर-शोर से उठाने वाली बीजेपी सरकार धर्मांतरण के मुद्दे को क्यों नहीं उठा पाई? अभी तक क्यों नहीं समान नागरिक संहिता कानून पर कोई बहस की गई? कश्मीरी पंडितों की समस्या का क्या हुआ?
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है. हमारा संविधान हर किसी को अपना धर्म चुनने और अपनी परंपरा के पालन की आजादी देता है. संविधान के आर्टिकल 25 से आर्टिकल 28 तक में अपने धर्म और अपनी परंपराओं के अनुपालन की गारंटी सुनिश्चित की गयी है. भारतीय संविधान के निर्माण के समय जब संविधान सभा की बैठकों में धर्म के अधिकार का प्रश्न आया तो ईसाइयों के दबाव में यह निर्णय लिया गया कि अनुच्छेद २५ (ऐ) के अंतर्गत किसी भी धर्म के प्रचार या मानने की स्वतन्त्रता का स्पष्ट उल्लेख किया जाये.
सरदार वल्लभ भाई पटेल ने जब संविधान सभा के समक्ष एक अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत की तो कनाहिय्या मानिक लाल मुंशी ने उसमें निम्न प्रावधान जोड़ने का प्रस्ताव किया- “कोई भी धरमांतरण यदि धोखे, दबाव या लालच के द्वारा या १८ वर्ष से कम आयु के व्यक्ति का होता है तो उसे कानून मान्यता नहीं देगा”. लेकिन ईसाई मिशनरियों ने इसका घोर विरोध किया और सुप्रीम कोर्ट ने भी यह राय व्यक्त की कि लोभ, लालच और दबाव से कराया गया धर्मांतरण धर्म प्रचार की स्वतंत्रता का अंग नहीं है.
वर्ष १९६० में आर्य नेता पंडित प्रकाशवीर शास्त्री ने धर्मांतरण पर अंकुश सम्बन्धी एक विधेयक प्रस्तुत किया था और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस विधेयक के समर्थन में १९-०२-१९६० को लोकसभा में अपने ओजस्वी भाषण में कहा था कि “अपनी परम्परा के अनुसार हमने एक असाम्प्रदायिक राष्ट्र की स्थापना की है”, लेकिन इसका अर्थ ये कदापि नहीं है कि धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर धर्म का परिवर्तन बौध्दिक और अध्यात्मिक विकास की सीढी न होकर एक ऐसी योजना का अंग बन जाये जिसके पीछे राजनैतिक उद्देश्य छिपे हों”. लेकिन उस बिल का कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला और वो ठंडे बसते में चला गया.
वर्ष १९७८ में मोरारजी देसाई सरकार में उसी पार्टी के लोकसभा सदस्य ओमप्रकाश त्यागी ने धर्म स्वातन्त्र्य विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत किया जिसके अनुसार-
वर्ष १९७८ में मोरारजी देसाई सरकार में उसी पार्टी के लोकसभा सदस्य ओमप्रकाश त्यागी ने धर्म स्वातन्त्र्य विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत किया जिसके अनुसार-
-अधिनियम का संक्षिप्त नाम धर्म स्वातन्त्र्य अधिनियम १९७८ होगा.
-यह उस तारीख को प्रवृत होगा जो केंद्र सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे.
-इस अधिनियम में जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो.
a. संपरिवर्तन से अभिप्रेत है कि एक धर्म को त्यागकर दुसरे धर्म को अंगीकृत करना.
b. बल के अंतर्गत बल प्रदर्शन या किसी प्रकार की क्षति की धमकी (जिसके अंतर्गत दैवी अप्रसाद या समाज से बाहर करने की धमकी है) भी होगी.
c. कपट के अंतर्गत दुव्यर्प्देष्ण या कोई अन्य कपटपूर्ण उपाय भी होगा.
c. कपट के अंतर्गत दुव्यर्प्देष्ण या कोई अन्य कपटपूर्ण उपाय भी होगा.
d. उत्प्रेरणा के अंतर्गत किसी दान या परितोषण को, चाहे वह नकद रूप में हो या वस्तु रूप में हो, प्रस्थापना भी होगी और इसके अंतर्गत कोई फायदा भी होगा चाहे वह धन सम्बन्धी हो या अन्यथा और.
e. अवयस्क से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो १८ वर्ष से कम आयु का हो.
(यह विधेयक विषयक विवरण उनकी पुस्तक “धर्मांतरण” से लिया गया है) इसपर मदर टेरेसा जिसे संत घोषित किया गया, ने मोरारजी देसाई को पत्र लिखकर अपना रोष जताया और कहा कि यदि यह विधेयक पास हो गया तो चर्च को चिकित्सालयों एवं विद्यालयों के द्वारा की जा रही सेवा का काम कठिन हो जायेगा. इस पत्र के जवाब में मोरारजी देसाई ने लिखा कि यदि धर्मांतरण के लिए ही चिकित्सालय और विद्यालय चलाये जा रहे हैं तो उन्हें तत्काल ये कार्य बंद कर देना चाहिए. यह सेवा नहीं छल है. और ये विधेयक भी काल के गाल में कथित सेक्युलर राजनीती के भेंट चढ़ गया.
हाल के दशकों में राजनीतिक दलों और मीडिया में धर्मांतरण पर एक जबरदस्त बहस छिड़ी है. देश के 7 राज्यों (हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, ओड़िशा और आंध्रप्रदेश) में धर्मांतरण विरोधी कानून लागू हैं. बिल पास हो गया, तो इस सूची में शामिल होनेवाला झारखंड आठवां राज्य बन जायेगा.
देश के सबसे बड़े राज्य uttar pradesh में आज हिन्दुओं की स्वयम्भू ठेकेदार बीजेपी सरकार के पास पूर्ण बहुमत है और महंत योगी आदित्यनाथ जैसे फायरब्रांड नेता मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हैं तब ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि हिन्दू और हिंदुत्व की रक्षा के नाम पर झंडा उठाये घुमने वाले ये कथित हिन्दू रक्षक संगठन और राजनितिक दल इन समस्याओं के किसी ठोस पहल के लिए धरातल पर आखिर क्या कर रहे हैं? क्या केवल बंद कमरों में चिन्तन करने से इन समस्याओं का समाधान सम्भव हो पायेगा?