दरअसल *पंडित काव वास्तविक अर्थ है विद्वान, स्कॉलर, बुद्धिजीवी अथवा किसी विषय विशेष में पारंगत होना। महात्मा विदुर ने पंडित अर्थात बुद्धिजीवी और मूढ़ चित्त अर्थात मूर्ख के जिन गुणों-अवगुणों का बखान किया है, वह मैं आपके समक्ष रखता हूँ-*
पंडित अर्थात बुद्धिजीवी के लक्षण-
*1. जो अच्छे कर्मों का सेवन करता है और बुरे कर्मों से दूर रहता है, साथ ही जो आस्तिक और श्रद्धालु है वह पंडित है।*
*2. जो किसी विषय को देर तक सुनता है किंतु शीघ्र ही समझ लेता है और उसे समझकर कर्तव्य बुद्धि से पुरुषार्थ में प्रवृत्त होता है, कामना से नहीं, अर्थात जो केवल अपने कर्म पर ध्यान करता है और फल की इच्छा नहीं करता वही पंडित है।*
*3. जो व्यक्ति बिना पूछे किसी दूसरे के विषय में कोई बात नहीं कहता अर्थात बिना मांगे सलाह न देना, पंडित की पहचान है।*
*4. जो पहले निश्चय करके फिर कार्य का आरंभ करता है, कार्यों के बीच में नहीं रुकता, समय को व्यर्थ नहीं जाने देता और चित्त को वश में रखता है वह पंडित है।*
*5. जो तर्क में निपुण और प्रतिभाशाली है और कभी कुतर्क नहीं देता वह पंडित है।*
*6. जिसकी बुद्धि उसकी विद्या का अनुसरण करती है और विद्या उसकी बुद्धि का तथा जो सदैव अपने से बड़ों का आदर-सम्मान करता है और अपने से छोटों का कभी अपमान नहीं करता वही पंडित है।*
जिस व्यक्ति में उपरोक्त समस्त गुण विद्यमान हैं वह ममहापण्डित हैं।
*-मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*