आज देश के जो हालात हैं और हाल ही में दिल्ली में हुई हिंसा को देखने के बाद यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि क्या माननीय गृहमंत्री अमित शाह अपने दायित्व को सही प्रकार से नहीं निभा पा रहे हैं?
नागरिकता संशोधन कानून बनने के बाद से ही देश के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं, और उधर भाजपा भी लगातार चुनाव हारती जा रही है। इन दोनों ही बातों का एक दूसरे से गहरा सम्बन्ध है। दरअसल जब तक भाजपा के चुनावी रणनीतिकार की कमान पूरी तरह से अमित शाह के हाथों में थी तब तक भाजपा एक बाद एक चुनाव जीत रही थी और देश के हालात भी लगभग सामान्य थे। लेकिन जबसे अमित शाह ने गृहमंत्रालय का पदभार सम्भाला है और चुनावी राजनीति छोड़ी है, न देश स्थिर है और न भाजपा।
20 दिसम्बर को एकाएक पूरे देश में एक वर्ग विशेष के लोग सड़कों पर आ जाते हैं और पुलिस पर सीधे-सीधे हमला बोल देते हैं। लेकिन पुलिसकर्मियों के हाथ बंधे होने के कारण वह सीधे रूप से कोई कार्यवाही नहीं कर पाते, उसके बाद शाहीन बाग़ में धरने के नाम पर सड़कों को जाम कर दिया जाता है लेकिन पुलिस मूकदर्शक बनकर उन्हीं प्रदर्शनकारियों की रक्षा में जुट जाती है जो लगातार देश और पुलिस विरोधी नारे लगा रहे होते हैं।
उससे पहले जेएनयू और जामिया मिल्लिया इस्लामिया में छात्रों के हिंसक प्रदर्शन होते हैं। लेकिन वहां पर भी पुलिस ख़ामोश तमाशा देखती है।
दिल्ली में लगातार एक के बाद एक हिंसक झड़प होती हैं फिर भी पुलिस और सुरक्षा बल गांधी के तीन बन्दर बने रहते हैं, जिसका खामियाजा भुगतना पड़ा उस अंकित शर्मा को जिसे 400 बार चाकू से गोदा गया, उस रतनलाल को जो सिर्फ़ अपनी ड्यूटी निभा रहा था। और ऐसे ही तमाम लोगों को जिनका दंगे या दंगाइयों से कोई ताल्लुक नहीं था।
3 दिन लगातार हिंसा का तांडव होता है लेकिन गृहमन्त्री और केन्द्र सरकार की नींद नहीं खुलती, क्यों?
क्या कारण है कि ताहिर हुसैन अपने घर को आतंक का अड्डा बना लेता है और ख़ुफ़िया विभाग को कानोंकान ख़बर भी नहीं होती?
क्या कारण है कि 20 दिसम्बर के वहशत के नंगे नाच के बावजूद भी सुरक्षा बलों को शूट एट साइट के आदेश नहीं दिए जाते?
क्या कारण है कि पूरे देश को शाहीन बाग़ बनाने की तैयारियों के बावजूद दिल्ली के शाहीन बाग़ पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती है?
क्या कारण है कि ओवैसी बन्धुओं, वारिस पठान, जावेद अख्तर, स्वरा भास्कर, फैजुल हसन, कन्हैया कुमार, हार्दिक पटेल, उमर ख़ालिद, महमूद प्राचा, सोनिया गांधी, शुएब आलम जमाई, मणिशंकर अय्यर, मनीष सिसोदिया, शशि थरूर, रावण जैसे लोगों पर कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है?
क्या कारण है कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया, एसडीपीआई, जमाते इस्लामी जैसे तमाम संगठनों पर अभी तक प्रतिबंध नहीं लगाया जा रहा है?
ये और ऐसे कई और प्रश्न हैं जिनके जवाब देश की जनता जानना चाहती है और गृहमन्त्री अमित को उनके जवाब देने ही होंगे।