केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून को लागू करके निश्चित रूप से एक सराहनीय कदम उठाया है। लेकिन राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NRC) पर अभी भी सरकार का रुख़ स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। जबकि गृहमंत्री श्री अमित शाह ने लोकतंत्र के मंदिर संसद भवन में NRC को पूरे देश में लागू करने की बात कही थी, हालांकि विपक्ष और मुस्लिम संगठनों के दबाव में आकर सरकार ने “till Now” शब्द लगाकर NRC के भविष्य पर एक प्रश्नचिन्ह अवश्य लगा दिया है।
मूल प्रश्न यह है कि यदि भाजपा की केंद्र सरकार NRC को अभी लागू करने की स्थिति में नहीं है तब उसपर भाजपा नेताओं विशेषतः अमित शाह ने बेवज़ह बयानबाजी क्यों की थी, और यदि देर-सबेर उसको लागू करना ही है तब आख़िर क्या कारण है कि अभी तक उसका कोई ड्राफ्ट तैयार नहीं किया गया? और न ही इस सम्बंध में कोई प्रस्ताव कैबिनेट में आ पाया है।
भारत का मुसलमान कथित तौर पर NRC से अपने आपको डरा हुआ महसूस कर रहा है, जिसके कारण पूरे देश में मुस्लिम संगठनों और उनके हिमायतियों द्वारा नफ़रत की आग लगाई जा रही है, जिसमें विपक्ष लगातार घी डालने का काम कर रहा है।
लेकिन इसके लिए केवल विपक्ष और मुस्लिम संगठनों को दोषी ठहराना पक्षपात होगा, क्योंकि हमारा मानना है कि देशभर में चल रही उहापोह की स्थिति के लिये केंद्र सरकार का दोगला रवैया भी काफ़ी हद तक जिम्मेदार है।
केंद्र सरकार दोनों हाथों में लड्डू नहीं रख सकती, उसे यह स्पष्ट करना ही होगा कि NRC का वास्तविक उद्देश्य क्या है? और उससे भारत में रहने वाले अल्पसंख्यक समाज पर क्या विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। केंद्र सरकार को चाहिए कि वह NRC के ड्राफ्ट को जल्द से जल्द तैयार करके संसद के सदन पटल पर रखे ताकि विपक्ष द्वारा फैलाई जा रही तमाम अफवाहों पर अंकुश लग सके, और यदि NRC लागू नहीं किया जाना है तो केंद्र सरकार उसे भी पूरी तरह से स्पष्ट करे।
बहरहाल, कुल मिलाकर भाजपा को आरपार की कुश्ती तो लड़नी ही होगी।
-मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”