मौहम्मद इक़बाल ठेकेदार |
1992 में अपना राजनीतिक करियर शुरू करने वाले पूर्व बसपा विधायक मौहम्मद इक़बाल ठेकेदार को एक बार फिर से बसपा से निष्कासित कर दिया गया है। इससे पूर्व सन 1998 में भी इकबाल ठेकेदार को बसपा से निष्कासित किया गया था, किन्तु बाद में 2006 में उनकी पुनर्वापसी हुई थी।
मौहम्मद इकबाल ठेकेदार को 16/06/1996 में बसपा सुप्रीमो मायावती द्वारा विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया था।
मौहम्मद इकबाल ठेकेदार 2002 में चाँदपुर विधानसभा क्षेत्र से पहली बार निर्दलीय चुनाव लड़े थे, जिसमें उन्हें लगभग 38,000 वोट मिले थे। उससे पहले इकबाल ठेकेदार ग्राम प्रधानी और जिला पंचायत का भी चुनाव लड़ चुके थे।
2006 में बसपा में पुनर्वापसी के बाद सन 2007 में बसपा ने इकबाल ठेकेदार को अपने टिकट पर चुनाव लड़वाया था। जिसमें उन्हें 61,000 वोट मिले और विजय प्राप्त हुई, उस समय उनकी निकटतम प्रतिद्वंद्वी थीं भाजपा की कविता चौधरी। 2012 में एक बार फिर से बसपा के ही टिकट पर चुनाव लड़े और इस बार उनकी सीधी टक्कर समाजवादी के प्रत्याशी शेरबाज पठान से हुई, जिसमें उन्हें कुल 55,000 वोट मिले और उन्हें एक बार फिर विजयश्री प्राप्त हुई।
2017 में इकबाल ठेकेदार तीसरी बार बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े और इस बार अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कमलेश सैनी (भाजपा) से चुनाव हार गए। लेकिन इस बार तमाम विरोधों के बावजूद भी उन्हें करीब 57,000 वोट मिले। जबकि त्रिकोणीय चुनाव हुआ था जिसमें सपा के मौहम्मद अरशद को करीब 34,000 वोट मिले थे।
इस बार मौहम्मद इकबाल ठेकेदार ने 2019 में लोकसभा चुनाव लड़ने की ठान ली है। लेकिन ऐन वक़्त पर उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वीयों ने उन्हें नुकसान पहुंचाया और उनपर अनर्गल आरोप लगाकर उन्हें बसपा से निष्कासित कर दिया गया।
इकबाल समर्थकों का मानना है कि इस सबके बावजूद मौहम्मद इक़बाल ठेकेदार को हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। मुस्लिम समाज के एक बड़े वर्ग का मानना है कि मौहम्मद इकबाल ठेकेदार को कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहिए, वहीं एक दूसरे वर्ग का मानना है कि मौहम्मद इकबाल ठेकेदार को बसपा सुप्रीमो मायावती से सीधे बातचीत करके आपसी गलतफहमियों को दूर करना चाहिए और बसपा के टिकट पर ही चुनाव लड़ना चाहिए।
कुल मिलाकर इक़बाल समर्थकों और मुस्लिम समाज के एक बड़े वर्ग का यह मानना है कि यदि बसपा किसी शेख़ बिरादरी के व्यक्ति को अपना प्रत्याशी चुनती है तो उससे नगीना सीट को भी फायदा होगा।
फिलहाल एक बात लगभग तय है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस(यूपीए), भाजपा(एनडीए) औऱ तीसरे मोर्चे (सपा, बसपा व अन्य दल) के बीच चुनाव होना है।
और यह सब जानते हैं कि लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और भाजपा ही मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टियां हैं। बाकी क्षेत्रीय पार्टियां केवल अपना वजूद बचाने के लिए जूझ रही हैं।
ऐसे में यदि मौहम्मद इकबाल ठेकेदार कांग्रेस का टिकट लेने में कामयाब हो जाते हैं तो मुकाबला बेहद दिलचस्प होना तय है। क्योंकि पिछले कुछ समय में कांग्रेस का जनाधार बढ़ा है। इस समय मुस्लिम, दलित और अन्य के साथ-साथ ब्राह्मण समाज का रुझान भी कांग्रेस की ओर हो चला है।
उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों के साथ जो सौतेला व्यवहार भाजपा नेताओं और उनके मुखिया द्वारा किया जा रहा है, वह जगजाहिर है।
फिलहाल देखते हैं कि आगे-आगे देखिए होता है क्या.
*-मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*
राजनीतिक विश्लेषक