राष्ट्रीय स्वयंसेवक प्रमुख श्री मोहन भागवत के मौबलिंचिंग पर दिए गए एक बयान के जवाब में AIMIM सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी साहब ने कहा है कि – “कायरता, हिंसा और कत्ल करना गोड्से के हिंदुत्व वाली सोच का नतीजा है। मुसलमानों की लिंचिंग भी इसी सोच का नतीजा है।”
लगता है शायद ओवैसी यह भूल गए कि -जिनके खुद के घर शीशे के हों, वह दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते। अगर कायरता, हिंसा और कत्ल करना गोड्से के हिंदुत्व वाली सोच का नतीजा है तो नोआखली जिले में जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन की प्रतिक्रिया में हुए हिंदुओं की लिंचिंग, कश्मीर में निर्दोष और निहत्थे कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम, पश्चिम बंगाल में हो रहा हिंसा का तांडव, बर्मा में रोहिंग्या मुसलमानों द्वारा किया गया हिंदुओं का नरसंहार, दिल्ली में अंकित शर्मा पर 400 बार चाकुओं के प्रहार और केरल में आये दिन संघ कार्यकर्ताओं कत्ल क्या भारत के प्रथम आतंकी अब्दुल रशीद की जिहादी सोच का नतीजा है? वही अब्दुल रशीद जिसने एक बूढ़े और बीमार सीधे-सच्चे संत पुरुष स्वामी श्रद्धानन्द को कायराना तरीके से धोखे से उनके घर में मार डाला था।
ओवैसी यह भी भूल रहे हैं कि नवाब महमूद नवाज खान किलेदार ने मजलिसे इत्तेहादुल मुसलमीन (एम.आई.एम) नाम के संगठन की नींव रखी. इसके संस्थापक सदस्यों में सैयद कासिम रिजवी का नाम भी शामिल था जो कट्टर रजाकार नामक हथियारबंद गुट का सरगना था. MIM और रजाकार दोनों ही हैदराबाद के देशद्रोही निजाम के समर्थक थे. इस संगठन ने न केवल मजहबी कारणों से ८० प्रतिशत हिन्दू आबादी वाले हैदराबाद के भारत में विलय का विरोध किया, बल्कि तमाम हिन्दुओं की हत्या के साथ कई महिलाओं के साथ दुष्कर्म भी किया. हैदराबाद में आर्य समाज के प्रख्यात वकील श्यामलाल वकील की रजाकारों ने नृशंस हत्या कर दी थी.
१० सितम्बर १९४८ को सरदार पटेल ने हैदराबाद के निजाम को एक खत लिखा जिसमें उन्होंने हैदराबाद को हिंदुस्तान में शामिल होने का आखिरी मौका दिया. तब हैदराबाद के निजाम ने सरदार पटेल की अपील ठुकरा दी और तब के MIM के अध्यक्ष कासिम रिजवी ने खुलेआम भारत सरकार को धमकी दी थी कि यदि सेना ने हमला किया तो उन्हें रियासत में रह रहे ६ करोड़ हिन्दुओं की हड्डियाँ ही मिलेंगी.सेना ने ४ दिन में ही हैदराबाद के निजाम के लड़ाकों की कमर तोड़ दी और निजाम पाकिस्तान भाग गया. उसके बाद एम.आई.एम को देशद्रोही संगठन मानकर इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था. १९५७ में भारत छोड़ने से पूर्व रिजवी ने MIM की कमान अब्दुल वाहिद ओवैसी को सौंपी जिसने बाद में दल के नाम के आगे “अखिल भारतीय (आल इंडिया)” शब्द जोड़ दिया. ये वही अब्दुल वाहिद था जिसे ११ महीने जेल में रखा गया था. इस पर हैदराबाद पुलिस ने साम्प्रदायिक सद्भावना को भंग करने, मज़हबी नफ़रत फ़ैलाने, स्टेट और देश के ख़िलाफ़ मुसलमानों को भड़काने के आरोप तय किये गए थे. बाद में इसकी कमान सुल्तान सलाहुद्दीन को मिली जो कि “सलार-ए-मिल्लत” अर्थात मुसलमानों के नेता के नाम से मशहूर हो गए. उसके बाद संगठन की बागडोर उसके पुत्र असदुद्दीन ओवैसी के हाथ में पहुंची।
ओवैसी भूल गए कि कायरता, हिंसा और कत्लेआम की रजाकारी विचारधारा AIMIM के DNA में मौजूद है। जिसका एक उदाहरण उनके छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी ने तब दिया था जब उन्होंने कथिततौर पर कहा था कि 100 करोड़ को हम 15 करोड़ मात्र 15 मिनट में काट देंगे।
अब आप ही सोचिए बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी, कौन कायराना, हिंसा और क़त्ल वाली सोच को रखता है. पूरी दुनिया को मालूम है कि कायरता, हिंसा और क़त्ल करना किसकी सोच का नतीजा है। आईएसआईएस से लेकर रोहिंग्या तक सबकी एक ही सोच है, मारो,काटो और राज करो। भारत में सबसे बड़ा लाभ यह है कि यहां गोड्से की आड़ में छुपकर वार करना बहुत आसान है। और हिंदुस्तान में जयचंदों की कमी तो कभी रही ही नहीं, आजकल तो पूरी “छद्म सेक्युलर जमात” ही जयचंद की भूमिका निभा रही है।
🖋️ *मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
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*विशेष नोट- उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। उगता भारत समाचार पत्र के सम्पादक मंडल का उनसे सहमत होना न होना आवश्यक नहीं है। हमारा उद्देश्य जानबूझकर किसी की धार्मिक-जातिगत अथवा व्यक्तिगत आस्था एवं विश्वास को ठेस पहुंचाने नहीं है। यदि जाने-अनजाने ऐसा होता है तो उसके लिए हम करबद्ध होकर क्षमा प्रार्थी हैं।
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