यह बात भले ही मोदी-योगी के अंधविरोधियों और अखिलेश के अंधभक्तों के हलक से न उतर रही हो लेकिन सच यही है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस-भाजपा मिलकर जो गेम खेल रही हैं उससे क्षेत्रीय पार्टियों का नुकसान होना तय है. इसमें कोई शक नहीं है कि उत्तर प्रदेश में प्रियंका गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस मुस्लिम समाज में तेजी से पैठ बना रही है. CAA-NRC के विरोध की आड़ में जो गेम कांग्रेस और भाजपा खेल रहे हैं उसका सबसे बड़ा नुकसान समाजवादी पार्टी को होना तय है.
दरअसल ६ दिसम्बर १९९२ को जब बाबरी मस्जिद विध्वंस हुआ था उसके बाद से लगातार मुस्लिम समाज कांग्रेस का कट्टर दुश्मन बन गया था और उस समय समाजवादी पार्टी मुस्लिम समुदाय के लिए डूबते को तिनके का सहारा बनकर उभरी थी. १९९० में निहत्थे और निर्दोष कारसेवकों पर गोलियां चलवाकर भूतपूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने तुष्टिकरण की राजनीति का एक ऐसा घिनौना खेल खेला था जिसके चलते मुस्लिम समाज पूरी तरह से मुलायम सिंह का मुरीद बन गया था, और जब १९९२ में बाबरी मस्जिद विध्वंस हुआ तब मुलायम सिंह यादव और उनकी समाजवादी पार्टी मुस्लिम समाज के लिए एक आदर्श के रूप में स्थापित हो गई और मुलायम सिंह को “मुल्ला मुलायम” का खिताब मिल गया था. उसके बाद से अब तक लाख कोशिशों के बावजूद कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपना पैर नहीं जमा पा रही थी. इस बीच समाजवादी की कमान मुलायम सिंह के सुपुत्र अखिलेश यादव के हाथों में आ गई और उन्होंने अपने पिताजी से भी एक कदम आगे बढ़कर तुष्टीकरण की राजनीति सभी सीमायें लांघते हुए सार्वजनिक रूप से घोषणा कर दी कि केवल मुस्लिम लडकियाँ ही हमारी बेटियां हैं. सही मायने में समाजवादी पार्टी में अखिलेश तो केवल एक मोहरा भर थे, असल चेहरा तो आजम खान साहब को माना जाता है.
लेकिन अब जबसे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की कमान प्रियंका गाँधी के हाथों में आई है तबसे लेकर आज तक कांग्रेस लगातार मुस्लिम समाज में पैठ बनाने के लिए हरसम्भव प्रयास कर रही है. समाजवादी के पास यादव-मुस्लिम का जो समीकरण है उसमें से यादव समाज तो पहले ही भाजपा के खेमे में पहुंच गया है, जो थोड़ा बहुत बचा है उसे शिवपाल यादव लीलने को तैयार बैठे हैं. मुस्लिम समाज धीरे-धीरे कांग्रेस की ओर रुख कर रहा है. उसका एक प्रमुख कारण यह है कि कांग्रेस एक राष्ट्रीय स्तर की पार्टी है और प्रियंका गाँधी के सक्रिय राजनीति में आने से कांग्रेसियों के हौंसले बुलंद होने लगे हैं साथ ही मुस्लिम समाज प्रियंका गाँधी को मोदी के विकल्प के रूप में देख रहा है. जबकि राहुल गाँधी आज भी “पप्पू” की ही भूमिका निभा रहे हैं.
उधर समाजवादी का नेतृत्व भी बिखर रहा है. मुलायम सिंह यादव सही मायने में “बहादुर शाह जफर” की भूमिका में आ गए हैं, शिवपाल यादव “अपनी डफली अपना राग” अलाप रहे हैं, आजम खान जेलयात्रा करने की कगार पर पहुँच गए हैं और अखिलेश यादव के पास राजनितिक कोई खास अनुभव नहीं है और न ही आम जनता में उनकी अपनी कोई विशेष छवि अभी तक बन पाई है. ऐसे में अब खतरा इस बात का हो चला है कि अखिलेश यादव कहीं दूसरे अजीत सिंह न बन जाएँ.