मौहम्मद अरशद (बाएं) |
शतरंज के खेल में जब खुद बादशाह को मैदान में उतरना पड़े तो ये मान लेना चाहिए कि बादशाह की सेना कमजोर हो चुकी है. आज जिस तरह से मुहम्मद अरशद साहब को पत्रकारों को सफाई देने के लिए खुद मैदान में उतरना पड़ा उससे साफ जाहिर है कि अब उनकी सेना कमजोर हो गई है. इससे ये भी जाहिर है के अरशद साहब जैसे “धनबली नेता” के पास न तो कोई मीडिया प्रवक्ता है, और न ही कोई समझदार राजनीतिक सलाहकार. हालाँकि अरशद साहब ने मीडिया के सवालों का जिस डिप्लोमैटिक तरीके से जवाब दिया उससे इतना कहा जा सकता है कि अब वो काफी समझदार हो गए हैं. एक बात और जो गौर करने लायक है, वह यह कि समाजवादी का एक जिम्मेदार नेता और वर्तमान चेयरपर्सन का पुत्र होने के बावजूद अरशद साहब का अपनी समिति “फ्रेंड्स क्लब सोसाइटी” से प्रेम खत्म नहीं हुआ. वो कुछ ऐसे लोगों का बचाव करते नजर आये जो सोशल-मीडिया पर कहीं न कहीं उनकी छवि को नुकसान पहुंचा रहे हैं. वैसे ये एक अच्छे इन्सान होने के लक्षण हैं कि वो अपने वफादारों को सार्वजनिक रूप से सही साबित करने का प्रयास करें लेकिन एक अच्छा राजनीतिज्ञ होने के नहीं. अरशद साहब ये नहीं जानते कि राजनीति में व्यक्तिगत छवि का बड़ा महत्व होता है और फिलहाल अरशद साहब की व्यक्तिगत छवि जनता की नजरों में अच्छी है. अरशद साहब को ये जान लेना चाहिए कि आज वो जिस मुकाम पर हैं वो उनकी साफसुथरी छवि की ही देन है.
मौहम्मद इकबाल ठेकेदार |
उधर पूर्व विधायक और बसपा के वरिष्ठ नेता मौहम्मद इकबाल ठेकेदार साहब ने राजनीतिक शतरंज पर जो चाल चली है वो भले ही सामान्य चाल लग रही हो लेकिन एक अच्छा खिलाड़ी समझ सकता है कि ये कोई मामूली चाल नहीं है. इस शहर में दो लोगों की ही राजनीति आज भी मजबूत है एक शेरबाज पठान और दुसरे इक़बाल ठेकेदार. इक़बाल साहब ने पहले जिस तरह से मुहम्मद इमरान को शेख बिरादरी का सदर बनवाया और अब इसरार मलिक को बसपा का नगराध्यक्ष इसे कमअक्ल भले ही न समझें लेकिन राजनीति को समझने वाले अच्छी तरह से समझने लगे हैं कि इससे इक़बाल साहब ने जहाँ शेख बिरादरी में अपने विरोध को कम करने का प्रयास किया है वहीँ उन्होंने मलिक बिरादरी पर भी अपनी पकड़ को मजबूत करने का दांव चला है.
चाणक्य नीति है कि जब दो ताकतवर दुश्मन सामने हों तो उनमें से एक से हाथ मिला लेना चाहिए और चांदपुर के एक दिग्गज राजनीतिज्ञ आजकल उसी रणनीति पर काम कर रहे हैं. हमें ये खबर बहुत गम्भीर व्यक्तित्व वाले राजनीतिज्ञ से मिली है और अक्सर उनकी जानकारी बहुत सटीक होती है. हालाँकि हमारे पास अभी कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं लेकिन अगर ये खबर सच होती है तब चांदपुर के कई नये-नये राजनीतिज्ञों को हार्टअटैक भी आ सकता है, भले ही ये बात कुछ लोगों के हलक से न उतरे लेकिन राजनीति में न तो कोई स्थाई दुश्मन होता है और न कोई स्थाई दोस्त, यहाँ सबकुछ सम्भव है. क्योंकि राजनीति में कीमत “सत्ता” की होती है “रिश्तों” की नहीं.
बहरहाल, अब जबकि मौहम्मद अरशद साहब ने खुद मोर्चा सम्भाल लिया है तो मेरी शुभकामनाएं अरशद साहब के साथ हैं, और आज अरशद साहब का नमक भी खाया है तो इसलिये इतनी सलाह जरुर कहूँगा कि-
कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से.
ये हादसों का शहर है जरा फासले से मिला करो..
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