माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि *”गाय का भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है। गाय को भारत देश में मां के रूप में जाना जाता है और देवताओं की तरह उसकी पूजा होती है। इसलिए गाय को राष्ट्रीय पशु का दर्जा दिया जाना चाहिए।”*
माननीय न्यायालय का यह निर्णय उन तमाम लोगों के मुहं पर करारा तमाचा है जो कि आजतक गौरक्षा के नाम पर विशुद्ध राजनीति करते रहे हैं या वो लोग जिन्होंने गोरक्षा के नाम पर फर्जी समितियां चलाकर अवैध चंदा वसूली कर अपनी जेबें भरी हैं, और खुलेआम गुंडागर्दी की है। जबकि सत्य यह है कि ऐसे अधिकांश फर्जी लोगों और संगठनों ने स्थानीय पुलिस थानों से सांठगांठ कर चोरी-चुपके से गौ-भक्षकों और गौ-हत्यारों की दलाली की है। यद्यपि सभी लोगों ने ऐसा नहीं किया लेकिन जिन्होंने किया है उन सबको अब सांप सूंघ गया है।
एक प्रश्न केंद्र में बैठी श्री मोदी सरकार पर भी उठता है कि उन्होंने आज तक इस विषय कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया? एससी-एसटी एक्ट पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को पलटने वाली श्री मोदी सरकार गौमाता को राष्ट्रीय पशु घोषित करने में क्यों हिचकिचाती रही है? क्या कारण है कि भाजपा सरकार का एक जिम्मेदार नेता खुलेआम यह कहता है कि मैं गोमांस खाता हूं और ऐसा करने से कोई मुझे नहीं रोक सकता। इसके बावजूद कोई हिंदुवादी संगठन और खुद भाजपा कोई कार्यवाही नहीं करता। और तो और उस नेता को श्री मोदी मंत्रिमंडल में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी मिल जाती है। हालांकि श्री योगी सरकार ने गोरक्षा और संवर्धन के लिए धरातल पर कई सार्थक और सकारात्मक कदम उठाए हैं। जिसके लिए योगी सरकार बधाई की पात्र है।
माननीय न्यायालय ने कहा कि *गाय के संरक्षण को हिंदुओं का मौलिक अधिकार में शामिल किया जाए।* कोर्ट ने आगे कहा कि *भारत के संविधान के अनुच्छेद 48 में भी कहा गया है कि गाय नस्ल को संरक्षित करेगा और दुधारू व भूखे जानवरों सहित गौ-हत्या पर रोक लगाएगा। भारत के 29 राज्यों में से 24 में गौ हत्या पर प्रतिबंध है।*
माननीय उच्च न्यायालय की यह टिप्पणी उन तमाम लोगों के मुहं पर जोरदार थप्पड़ है जो “गौ-भक्षण को अपना संवैधानिक आधार बताते रहे हैं”. यह वही लोग हैं जो खुलेआम संविधान की धज्जियां उड़ाते हैं लेकिन सारे बुरे कर्म करके संविधान की आड़ में ही छुप जाते हैं।
यह वही लोग हैं जिन्होंने हमेशा भारतीय हिन्दू संस्कृति, सभ्यता, परम्पराओं और आस्था का खुलकर विरोध किया है। वह लोग जिन्होंने मज़हबी कारणों और धार्मिक स्वतंत्रता की आड़ में गोहत्या को उचित ठहराया और गौहत्यारों को संरक्षण दिया, उनके लिए तो माननीय उच्च न्यायालय की यह टिप्पणी किसी श्राप से कम नहीं है।
भारतीय शास्त्रों, पुराणों व धर्मग्रंथ में गाय के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कोर्ट ने आगे कहा कि भारत में विभिन्न धर्मों के नेताओं और शासकों ने भी हमेशा गो संरक्षण की बात की है।
न्यायमूर्ति श्री शेखर कुमार यादव ने कहा कि सरकार को संसद में बिल लाकर गाय को मौलिक अधिकार में शामिल करते हुए राष्ट्रीय पशु घोषित करना होगा और उन लोगों के विरुद्ध् कड़े कानून बनाने होंगे, जो गायों को नुकसान पहुंचाते हैं। कोर्ट ने कहा कि जब गाय का कल्याण तभी इस देश का कल्याण होगा। कोर्ट ने कहा कि गाय के संरक्षण, संवर्धन का कार्य मात्र किसी एक मत, धर्म या संप्रदाय का नहीं है बल्कि गाय भारत की संस्कृति है और संस्कृति को बचाने का काम देश में रहने वाले हर एक नागरिक, चाहे वह किसी भी धर्म की उपासना करने वाला हो, की जिम्मेदारी है।
जो लोग कल तक गाय को माता और बैल को हमारा बाप बताकर हिन्दू आस्थाओं का मखौल उड़ाया करते थे, वह लोग अब माननीय न्यायालय से क्यों नहीं पूछते कि गाय माता है तो बैल कौन है??
🖋️ *मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”*
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