“भगवा गुंडे” यह शब्द आजकल एकाएक प्रचलन में आ गया है। क्यों आया है, किसने इस शब्द को ईजाद किया, और किसलिए किया ? यह एक अलग विषय है, किन्तु मूल प्रश्न यह है कि क्या अब गुंडों के रंग भी होने लगे? क्या गुंडे-बदमाशों की पहचान उनके रंगों से होगी, और क्या भगवा धारण करना “गुंडई” का प्रतीक है?
भगवा रंग की वास्विकता को जाने बिना, उसे गुंडों से जोड़ देना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं माना जा सकता है।
इसलिए यह जानना आवश्यक ही है कि भगवा या केसरिया रंग का सनातन हिन्दू धर्म में क्या महत्व है।
हिन्दू धर्म में अग्नि का बहुत महत्व है। यज्ञ, दीपक और दाह-संस्कार अग्नि के ही कार्य हैं। अग्नि का संबंध पवित्र यज्ञों से भी है। ऐसा कहा जाता है कि अग्नि बुराई का विनाश करती है और अज्ञानता की बेड़ियों से भी व्यक्ति को मुक्त करवाती है।
अग्नि में आपको लाल, पीला और केसरिया रंग ही अधिक दिखाई देगा। इसलिए भी केसरिया, पीला या नारंगी रंग हिन्दू परंपरा में बेहद शुभ माना गया है।
सनातन धर्म में केसरिया रंग उन साधु-संन्यासियों द्वारा धारण किया जाता है, जो मुमुक्षु होकर मोक्ष के मार्ग पर चलने लिए कृतसंकल्प होते हैं।
केसरिया या भगवा रंग शौर्य, बलिदान और वीरता का प्रतीक भी है।
शिवाजी की सेना का ध्वज, राम, कृष्ण और अर्जुन के रथों के ध्वज का रंग केसरिया ही था।भगवा या केसरिया सूर्योदय और सूर्यास्त का रंग भी है, मतलब हिन्दू की चिरंतन, सनातनी, पुनर्जन्म की धारणाओं को बताने वाला रंग है
केसरिया रंग त्याग, बलिदान, ज्ञान, शुद्धता एवं सेवा का प्रतीक है। भगवा वस्त्र को संयम, संकल्प और आत्मनियंत्रण का भी प्रतीक माना गया है।
जिस प्रकार आतंकवाद का कोई मज़हब नहीं होता, ठीक उसी प्रकार गुंडे-बदमाशों का भी कोई रंग नहीं होता। अपराधी केवल एक अपराधी ही होता है। उसको किसी भी धर्म विशेष अथवा रंग विशेष से नहीं जोड़ा जा सकता।
आज आपने अगर भगवा को गुंडई से जोड़ा, तो कल हरे, नीले, लाल और सफेद गुंडे भी सड़कों पर घूमते दिखाई देंगे।
भगवा को गुंडा कहने से पहले अपने गिरेबान में भी झांक लो, लाल और हरे गुंडे भी कल तक सड़कों पर काफी आतंक मचाते रहे हैं। आज भी जो पुलिस वालों की उंगलियां काटने की बातें कर रहे हैं, वह लाल-हरे ही हैं, गुंडे हों या नेता।
*-मनोज चतुर्वेदी शास्त्री*